जयदेवी जयदेवी जय योगेश्वरीमाते ।
जय योगेश्वरीमाते।
कुलस्वामिनी जगदंबे करुणामृतसरिते
धर्माला ये ग्लानी, स्थिति केविलवाणी ।
असुरे पीडित जनता, त्राता तिज न कुणी।
साद घाली तुज अंबे धाव धाव जननी ।
धावा पडता श्रवणी, घेशी धाव झणी
जयदेवी जयदेवी जय योगेश्वरीमाते ।।1।।
असुराते निर्दाळुनि, धर्मा रक्षियले।
सज्जनपालन केले, दुर्जन मर्दियले।
विश्रांतीस्तव निर्जन स्थाना शोधियले।
आंबग्रमानिकटी वास्तव्या केले।
जयदेवी जयदेवी जय योगेश्वरीमाते ।।2।।
वेदपुराणे थकली गाता तुज जेथे।
काय पामरे गावे वदतव महिम्याते।
दिगंत कीर्ती तव ही त्रिभुवनि दुमदुमते।
भावे भजता भक्ते पावशि झणि त्याते।
जयदेवी जयदेवी जय योगेश्वरीमाते ।।3।।
दु:सह भव हा तोडी या भव पाशाते।
जनन-मरण हे तेची चुकवी झणि माते।
मागत काहि न माते तव पदकमलाते।
द्यावा तव पदि आश्रय नत अज्ञाताते ।
जयदेवी जयदेवी जय योगेश्वरीमाते ।।4।।
भाद्रपद शुध्द शके 1887
दि. 30.8.1965
रचयिता 'अज्ञात'
प्रेषक :- द.ज.जोगळेकर
अमरावती (विदर्भ)